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बचपन में जहां हम पढ़ते थे, वहां बाथरुम नहीं थे.———बस.- गुरूजी से बोलते थे —जाएं ………………औरऔर चले जाते थे !
स्कूल में गुरूजी की कुर्सी के नीचे से कोई बच्चा निकल जाता था. गुरूजी समेत सब हँसते थे.
कभी गाहे बेगाहे किसी बच्चे से गुरु जी अपनी मालिश करा लेते थे न बच्चों को शिकायत होती थी ना बच्चों की मां बाप को !
हम खेलते कूदते, मटर के खेत से मटर की फलियाँ तोड़ते, अरहर के खेत से अरहर की फलियाँ तोड़ते, एक किलोमीटर पैदल चलकर रास्ते में चने कि बूटियां खाते खाते स्कूल आते-जाते थे कहीं कोई भय या डर नहीं था !
तब समाज स्वस्थ था हम सुरक्षित रहते थे!
अब बच्चों को अपनी सुविधानुसार मोटर, साइकिल, कार, स्कूल बस से स्कूल भेजा जाता है!
स्कूल की बड़ी-बड़ी दीवारें. हर कमरों में सीसीटीवी कैमरे. सुरक्षा की गारंटी के बीच बच्चों को पढ़ाने का माहौल तैयार किया गया है !
फिर भी प्रद्युम्न मारा गया !
क्योंकि अब समाज अस्वस्थ है और साथ ही हम असुरक्षित हैं.
केवल स्कूल को सुधारने से कुछ नहीं होगा हमारे समाज की कुत्सित मानसिकता को खत्म करना होगा ! तभी निर्भय व सुरक्षित वातावरण का निर्माण हो सकता है !
भावभीनी श्रद्धांजलि ———! प्रद्युम्न की आत्मा को ———–!
होश में तो आना ही होगा. जितना ज़ल्दी होश आ जाये बेहतर. शुभकामनाओं सहित. आप का हर दिन मंगलमय हो !
होश में तो आना ही होगा. जितना ज़ल्दी होश आ जाये बेहतर. शुभकामनाओं सहित. आप का हर दिन मंगलमय हो !
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[…] Source: लानत है! […]
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